पति की मौत, राशन से वंचित, अब भीख मांग रही सुमित्रा: मयूरचुंदी गांव की भूख से जूझती सच्चाई

पति की मौत, राशन से वंचित, अब भीख मांग रही सुमित्रा: मयूरचुंदी गांव की भूख से जूझती सच्चाई

दुलदुला विकासखंड के मयूरचुंदी ग्राम पंचायत में राशन वितरण में घोर अनियमितता, विधवा महिला हितग्राही की व्यथा ने खड़े किए कई सवाल

कुनकुरी, 5 मई 2025 : एक ओर सरकारें गरीबों को निशुल्क राशन देने की घोषणाएं करती हैं, तो दूसरी ओर छत्तीसगढ़ के जशपुर जिले के एक सुदूर आदिवासी गांव की सच्चाई इन वादों को आइना दिखा रही है। विकासखंड दुलदुला के अंतर्गत आने वाले ग्राम पंचायत मयूरचुंदी में रहने वाली सुमित्रा बाई की कहानी न केवल दिल झकझोर देने वाली है, बल्कि यह व्यवस्था की संवेदनहीनता का जीवंत उदाहरण भी बन गई है।

तीन साल पहले बीमारी से पति मलिया उर्फ मतिया के निधन के बाद सुमित्रा के ऊपर दो बच्चों की जिम्मेदारी आ गई। एक 18 वर्षीय बेटा रोहित और दूसरा 15 वर्षीय बेटा कुशल। न खेत है, न कमाई का कोई साधन। सुमित्रा ने वन अधिकार पट्टा के लिए आवेदन दिया था, लेकिन आज तक उसे जमीन का कानूनी हक नहीं मिला। अब वह वन क्षेत्र की एक अस्थायी जमीन पर फल-सब्जी लगाने की कोशिश करती है, लेकिन वहां हाथी और बंदरों के आतंक से कुछ भी बचता नहीं।

राशन नहीं, चने से जिंदगी नहीं चलती!

सरकार की सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) की बात करें तो यह सबसे बड़ी विफलता की मिसाल बन रही है। अप्रैल महीने में सुमित्रा को केवल चना मिला है, जबकि उसका राशन कार्ड यह दर्शाता है कि 10 रुपये बकाया हैं। भूख के आगे ये आंकड़े बेमायने हो जाते हैं।

सिसकती मजबूरी: भीख मांगने को विवश

अब हालात ऐसे हैं कि सुमित्रा हर दिन सुबह घर से निकलती है और गांव में घूम-घूमकर भीख मांगती है। यही उसके और उसके बच्चों का पेट भरने का एकमात्र जरिया बन गया है। उसके चेहरे की थकान, हाथों की लाचारी और आंखों की पीड़ा इस तथाकथित ‘कल्याणकारी राज्य’ के खोखले दावों पर करारा तमाचा है।

Jashpur